वैश्विक माध्य सतह का ताप 1961-1990 के सापेक्ष से भिन्न है
1995 से 2004 के दौरान औसत धरातलीय तापमान 1940 से 1980 तक के औसत तापमान से भिन्न है
भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान (average measured temperature) में 20वीं शताब्दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है.
पृथ्वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± (±) 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है.[१] जलवायु परिवर्तन पर बैठे अंतरसरकार पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change)(IPPC) ने निष्कर्ष निकला है कि "२० वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसतन तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य (due to) कारण एंथ्रोपोजेनिक (anthropogenic) ( मनुष्य द्वारा निर्मित ) ग्रीनहाउस गैसों (greenhouse gas) की अधिक मात्रा के कारण हुआ"[१] ग्रीनहाउस का असर हैI ज्वालामुखी के साथ मिलकर सौर परिवर्तन (solar variation) जैसी प्राकृतिक घटनाएं 1950 से पहले वाले औद्योगिक काल तक कम गर्मी के प्रभाव दिखाई देते थे तथा 1950 के बाद इसके ठंडा होने के अल्प प्रभाव दिखाई देते थे।[२][३]
इन निष्कर्षों की पुष्टि प्रमुख औद्योगिक देशों (scientific societies and academies of science) [४] की सभी राष्ट्रीय वैज्ञानिक अकादमियों सहित कम से कम 30वैज्ञानिक समितियों और विज्ञान अकादमियों ने की है।[५][६][७] जहाँ एक ओर कुछ निजी वैज्ञानिकों (individual scientists) ने आईपीसीसी की कुछ खोजों के प्रति असहमति व्यक्त की है,[८] वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन पर कार्य कर रहे अधिकांश वैज्ञानिकों ने आईपीसीसी के प्रमुख निष्कर्षों पर सहमति जताई है।[९][१०]
आईपीसीसी द्वारा सारगर्भित जलवायु प्रतिमान के (Climate model)प्रतिरूपण इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी[१] के दौरान और अधिक बढ़ सकता है।परिणामो में इतनी भिन्ता (scenarios)का कारन है ग्रीन्हौ-से गैसों (greenhouse gas)के उत्सर्जन के अलग-अलग मापदंड इस्तेमाल किए जा रहे हैं और जलवायु संवेदनशीलता (climate sensitivity)के भी अलग-अलग पैमाने बनाये गए हैं हालांकि अधिकतर अध्ययन 2100 तक की अवधि पर केद्रित हैं, फिर...
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